नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की लंबे समय से रुकी पड़ी IPO प्रक्रिया अब गति पकड़ सकती है, क्योंकि NSE और SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के बीच Co-Location केस को लेकर समझौते की बातचीत तेज़ हो गई है। यह वही मामला है जिसने NSE के IPO प्लान को सालों से रोके रखा है।
क्या है Co-Location केस?
Co-Location केस में आरोप था कि कुछ ब्रोकरों को एक्सचेंज के सर्वर के बेहद नज़दीक सर्वर लगाने की सुविधा दी गई, जिससे उन्हें अन्य ट्रेडर्स की तुलना में तेज़ डेटा एक्सेस मिला। इससे उन्हें अनुचित लाभ हुआ, जो मार्केट की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
SEBI से हो रही Settlement की बातचीत
सूत्रों के अनुसार, पिछले डेढ़ महीने से SEBI और NSE के बीच consent settlement को लेकर बातचीत चल रही है, ताकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबा न खिंचे और NSE अपने IPO की तैयारी आगे बढ़ा सके।
SEBI ने इस मामले में पहले की गई कार्रवाई को लेकर SAT (Securities Appellate Tribunal) के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अब अगर दोनों पक्ष एक सहमति पर पहुंचते हैं, तो कोर्ट की मंज़ूरी के बाद यह केस बंद किया जा सकता है।
Settlement राशि हो सकती है भारी
जानकारी के मुताबिक, SEBI इस बार NSE से करीब दोगुनी राशि की मांग कर सकता है, जो उसने 2023 में TAP (Trading Access Point) केस में ₹643 करोड़ देकर सेटल किया था। यानी Co-Location केस में ₹1200 करोड़ से ज़्यादा की मांग हो सकती है।
हालांकि NSE इस मामले में SAT से कुछ राहत पा चुका है, इसलिए भारी रकम को लेकर दोनों पक्षों में कड़ा मोलभाव हो सकता है।
SEBI का Settlement Formula कैसे काम करता है?
SEBI के settlement नियमों के अनुसार, कोई भी संस्था बिना दोष स्वीकार किए या इनकार किए जुर्माना देकर मामले का निपटारा कर सकती है। जुर्माना तय करने के लिए निम्नलिखित फैक्टर देखे जाते हैं:
- हर उल्लंघन के लिए एक Base Amount
- जल्दी settlement करने पर मिलने वाला Proceeding Conversion Factor (PCF)
- पुराने नियम उल्लंघन को देखते हुए Regulatory Action Factor (RAF)
- और Legal Fees व अन्य लागत
NSE ने SEBI को दी थी सहमति से निपटारा करने की पेशकश
28 मार्च 2024 को NSE ने SEBI को पत्र लिखकर Co-Location समेत सभी लंबित मामलों को amicable settlement के ज़रिए हल करने की इच्छा जताई थी। इस प्रस्ताव को NSE की गवर्निंग बोर्ड की मंजूरी भी मिल चुकी है।
Settlement की प्रक्रिया
अगर SEBI और NSE आपसी सहमति पर पहुंच जाते हैं, तो यह प्रस्ताव पहले SEBI की Internal Committee से होकर High Powered Advisory Committee (HPAC) तक जाएगा। HPAC की मंजूरी के बाद SEBI के Whole-Time Members अंतिम फैसला लेंगे। सुप्रीम कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद NSE Settlement राशि जमा करेगा और केस बंद माना जाएगा।
निष्कर्ष: IPO की नई उम्मीद
अगर यह Settlement सफल होता है, तो NSE का बहुप्रतीक्षित IPO आखिरकार हरी झंडी पा सकता है। इससे मार्केट में NSE की साख और पारदर्शिता को लेकर विश्वास भी लौटेगा। निवेशकों के लिए यह खबर बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि NSE का IPO भारतीय शेयर बाजार के सबसे बड़े इवेंट्स में से एक हो सकता है।
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